कोटा, 4 अप्रैल। प्रदेश के तापीय बिजलीघरों में कोयले के दोहन से निकलने वाली फ्लाई एश (सूखी राख) अब केवल बडे़ उद्योगों को ही मिल सकेगी। प्रदेश के ऊर्जा मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार, निविदा में वे उद्यमी पात्र होंगे, जिनका वार्षिक टर्नओवर 10 करोड़ रुपये है एवं उनके पास बिजलीघर से फ्लाई एश भरने के लिये 500 मीट्रिक टन क्षमता का साइलो हो। उन्हें 25 लाख रुपये की धरोहर राशि भी जमा करनी होगी। ये तीन अनिवार्य शर्तें होने से अब कोटा में फ्लाई एश से ईंट व ब्लॉक बनाने वाली 77 लघु इकाइयों को राख मिलना बंद हो गई है, जिससे कोटा में 5 हजार से अधिक श्रमिकों को रोजगार से वंचित होना पडे़गा।
राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम कर्मचारी संघ के अध्यक्ष रामसिंह शेखावत ने बताया कि ढाई दशक पहले कोटा थर्मल के किनारे नांता रोड पर विशाल क्षेत्रफल में फ्लाई एश पौंड में ज्यादा मात्रा में सूखी राख जमा हो जाने से पर्यावरण संकट पैदा हो गया था, जिसका उपयोग करने के लिये रीको द्वारा नांता में थर्मल किनारे पर्यावरण औद्योगिक क्षेत्र विकसित किया गया। फ्लाई एश ईंट व ब्लॉक तैयार करने के लिये 77 लघु इकाइयों को निशुल्क राख की आपूर्ति वर्षों से जारी थी। जिससे इनमें कार्यरत पांच हजार से अधिक श्रमिकों को रोजगार मिल रहा है।
शेखावत ने कहा कि सीमेंट कम्पनियों व बडे उद्यमियों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से इन शर्तों में बदलाव किया गया है। सीमेंट में निशुल्क फ्लाई एश की मात्रा 25 प्रतिशत तक होती है। जबकि सीमेंट ऊंचे दामों पर बेची जा रही है। उन्होंने मांग की कि निविदा शर्तों में संशोधन कर छोटी इकाइयों को थर्मल से निशुल्क फ्लाई एश की आपूर्ति जारी रखी जाये। अन्यथा फ्लाई एश उठाने वाली बडी कम्पनियों से सही दरों पर करोडों रुपये की राशि वसूल की जाये, जिससे उत्पादन निगम को आर्थिक लाभ हो सके।
फ्लाई एश प्रॉडक्ट मैन्यूफैक्चरिंग एसोसिएशन के अध्यक्ष राजेंद्र सिंह बैंस ने बताया कि निविदा की नई शर्तों के अनुसार अब केवल 4.50 लाख मीट्रिक टन फ्लाई एश उठाने वाले उद्योगों को इसकी अनुमति होगी, जबकि 50 टन राख उठाने वाली लघु इकाइयों को थर्मल से फ्लाई एश देना बंद कर दिया गया है, इससे नांता स्थित 77 लघु फ्लाई एश ईंट व ब्लॉक इकाइयां बंद पडी हैं। इनमें कार्यरत हजारों स्थानीय गरीब श्रमिकों के सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया है। उन्होंने कहा कि केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय की गाइड लाइन में ऐसी कोई शर्त नहीं है। फिर राजस्थान में सीमेंट कंपनियों व बडे निर्माताओं के दबाव में ऐसा क्यों किया जा रहा है।