तमसो मा ज्योतिर्गमय का संदेश देंगे आस्था के दीप, आएगी समृद्धि
मीरजापुर, 08 नवम्बर (हि.स.)। दीप पर्व दीपावली भले ही रंगीन-सतरंगी बल्बों से शहर की अट्टालिकाओं को रोशनी से चकाचौंध करता हो, पर आस्था के साथ बने मिट्टी के दीयों का एक अलग महत्व है। हाईटेक युग में एक से बढ़कर एक रंगीन बल्ब अपनी खूबसूरती की छटा बिखेरेंगे तो वहीं मद्धिम सा जलता हुआ मिट्टी का दीया परंपरा को जीवित रख तमसो मा ज्योतिर्गमय (अंधकार से प्रकाश की ओर चलो, बढ़ो) का संदेश देगा।
दीप पर्व दीपावली नजदीक आ चुका है। ऐसे में दूसरों के घरों को रोशन करने के साथ अपने घर भी खुशियां लाने की उम्मीदों संग कुम्हारों का चाक अब रफ्तार पकड़ चुका है। आधुनिक युग में भी दीपावली पर दीया और बाती के मिलन से ही घर-आंगन रोशन होंगे। दीयों के बाजार भी सज चुके हैं। कुम्हारों को उम्मीद है कि एक बार फिर से उनके अच्छे दिन लौटकर आएंगे। दीपावली दीयों का त्योहार है। कुम्हार दीये बनाने में तेजी से जुटे हैं। मिट्टी के दीपक व रोज बिकने वाले कुल्हड़ आदि बनाने में माता-पिता के साथ उनके बच्चे भी हाथ बंटा रहे हैं। कोई मिट्टी गूंथने में लगा है तो किसी के हाथ चाक पर आकार दे रहे हैं। लालडिग्गी, पांडेयपुर, महुवरिया समेत अन्य स्थानों पर इस समय दिन-रात मिट्टी के दीये बनाने का काम चल रहा है।
दीयों की बिक्री बढ़ने से लौटी खुशी, तेज हुई चाक की रफ्तार
पुश्तैनी काम में लगे कुम्हार बुद्धू प्रजापति, अनिल प्रजापति, दिलीप प्रजापति, सुद्धू प्रजापति बताते हैं कि इस बार मिट्टी के दीयों की मांग अधिक है। अब तक 15 हजार दीये बनाए हैं। 35 हजार दीये और बनाने हैं, जो पर्व के पहले ही बिक जाएंगे। शुरुआत में दीयों की कीमत कम होती है। मगर जैसे-जैसे त्योहार नजदीक आता है, डिमांड बढ़ती जाती है, दीयों के रेट भी बढ़ते जाते हैं। दीपावली तक 70-80 रुपये सैकड़ा तक दीये बिक जाते हैं। फिलहाल अभी 40 से 60 रुपये प्रति सैकड़ा दीये बेचे जा रहे हैं।
रोजगार का जरिया बनी पुस्तैनी कला
कुम्हारों का कहना है कि गत तीन वर्ष पहले पैतृक व्यवसाय खत्म सा हो गया था। अब लोग फिर मिट्टी के सामान को प्रमुखता दे रहे हैं। लोगों की बदली सोच से लग रहा है पुश्तैनी कुम्हारी कला व्यवसाय एक बार फिर रोजगार का जरिया बनेगा। इससे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का लोकल फार वोकल व आत्मनिर्भर भारत अभियान भी उड़ान भरेगा।
ईको फ्रेंडली होते हैं मिट्टी के सामान, सुरक्षित रहेगा पर्यावरण
मिट्टी से निर्मित मूर्तियां, दीये व खिलौने इको फ्रेंडली होते हैं। इसकी बनावट, रंगाई व पकाने में किसी भी प्रकार का केमिकल प्रयोग नहीं किया जाता। इको फ्रेंडली दीये पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाते। पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ने से मिट्टी की दीये और खिलौने फिर से गांवों व बाजारों में दिखने लगे हैं।
सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं मिट्टी के दीये
समाजसेवी समीर दुबे कहते हैं कि हमारे पूर्वज मिट्टी के दीये का उपयोग करते थे। ये दीये न सिर्फ पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से बेहतर हैं बल्कि इससे कुम्हारों को भी अपने परिवार का भरण-पोषण करने में मदद मिलती है। मिट्टी के दीये जलाने से सकारात्मक ऊर्जा पैदा होती है।
दीपावली पर जलाएंगे मिट्टी के दीये, कुम्हारों के घर भी होंगे रोशन
शंकर गुप्ता व अवधेश मोदनवाल ने बताया कि दीपावली पर वे चाइनीज झालर नहीं खरीदेंगे। घर रोशन करने के लिए मिट्टी के दीये ही जलाएंगे। वहीं विवेक मिश्रा, मनीष मिश्रा, विनय दुबे व प्रदीप दुबे कहते हैं, हमारे देश में दीपावली पर मिट्टी के दीये जलाने की ही परंपरा रही है। दीवापली हम सब की है। हमें यह प्रण लेना होगा कि सभी मिट्टी के दीये ही जलाएं। इससे कुम्हारों के घर भी रोशन होंगे।