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व्यवहार में ज्ञान, समझ और चेतना की आवश्यकता:डॉ. मोहन भागवत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि हिंदू धर्म का ज्ञान, जीवन उद्देश्य कि चेतना तथा हम कौन हैं और हमारा कौन है, इसकी समझ होना जरूरी है। नागपुर के रेशमबाग स्थित डॉ. हेडगेवार स्मृति मंदिर के महर्षि व्यास सभागार में आयोजित कार्यक्रम में सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने "राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ: हिन्दू राष्ट्र के जीवन उद्देश्य का क्रमबद्ध घोषणापत्र" इस ग्रंथ का गुरुवार को विमोचन किया। इस अवसर पर महानगर संघ चालक राजेश लोया, लेखक रमेश पतंगे और डॉ सुधाकर जाधवर ने सरसंघचालक के साथ मंच साझा किया। इस पुस्तक पर टिप्पणी करते हुए सरसंघचालक ने कहा कि भारत पर शक, हूण, यवन, मुगल और ब्रिटिश जैसी विदेशी ताकतों ने लगातार आक्रमण किया। हमने अपने मतभेदों और विश्वासघात के कारण सदैव विदेशियों को विजयी बनाया है। लगभग 2 हजार वर्षों की गुलामी और संघर्ष से हमें आत्म-विस्मृति हुई है। सरसंघचालक ने कहा कि हम भूल गये हैं कि हम कौन हैं और हमारा कौन है। हमें इससे बाहर निकलना होगा। उन्होंने बताया कि हमे अतीत की गलतियां दोहराने से बचना चाहिए। बतौर डॉ. भागवत हमारे पास हिंदू धर्म का बहुत ज्ञान है लेकिन उसके अनुसार कोई कार्य नहीं करता। नतीजतन हमें हिंदू धर्म को हमारे आचरण में लाना होगा। भागवत ने कहा कि हमें अपनी पहचान को ध्यान में रखते हुए अपने धर्म और संस्कृति के अनुसार कार्य करना चाहिए। भागवत ने बताया कि इससे विपरित परिस्थितियों मे बने रहने की क्षमता का निर्माण होगा। उन्होंने कहा कि संघ के गठन के समय की स्थिति और वर्तमान स्थिति में बहुत बड़ा अंतर है। प्रारम्भिक दिनों में सामान्य स्वयंसेवक से लेकर सरसंघचालकों तक सभी को विरोध एवं अभाव का सामना करना पड़ा लेकिन आज स्थिति बदल गयी है। समाज में संघ की स्वीकार्यता बढ़ी है और साधन भी उपलब्ध हैं लेकिन सभी को संघ की स्थापना के उद्देश्य को ध्यान में रखना चाहिए। बतौर सरसंघचालक संघ चाहता है कि हमारा समाज असुरी बल या धन के सहारे नहीं बल्कि धर्म के आधार पर विजयी हो। संघ का वर्णन करते हुए कहा गया है कि “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिन्दू राष्ट्र के जीवन उद्देश्य का क्रमबद्ध घोषणापत्र है"। सरसंघचालक ने आह्वान किया कि इस परिभाषा को ध्यान में रखते हुए हमारा आचरण और जीवन विवेकपूर्ण होना चाहिए।
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