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दूसरे चरण में भाजपा के सामने अमरोहा जीतने की चुनौती

लखनऊ, 22 अप्रैल (हि.स.)। उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में 26 अप्रैल को जिन आठ सीटों पर वोट पड़ेंगे उनमें अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर (सु0), अलीगढ़ और मथुरा की सीट शामिल है। पिछले चुनाव में अमरोहा के अलावा सात सीटों पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने जीत हासिल की थी। अमरोहा को जीतने के लिए इस बार भाजपा ने खास रणनीति बनाई है। बता दें, 2019 के आम चुनाव में बसपा-सपा-रालोद का गठबंधन था। 2024 के आम चुनाव में एनडीए में भाजपा-रालोद हैं। इंडी गठबंधन में कांग्रेस-सपा शामिल है ओर बहुजन समाज पार्टी (बसपा) अकेले मैदान में है।

अमरोहा सीट 2019 के चुनाव में भाजपा हार गई थी। बसपा के कुंवर दानिश अली 601,082 (51.39%) वोट पाकर यहां से जीते थे। भाजपा प्रत्याशी कंवर सिंह तंवर 537,834 (45.98%) दूसरे नंबर पर रहे। कांग्रेस के हिस्से में 12,454 (1.07%) थे। इस चुनाव में विपक्षी दलों सपा-बसपा-रालोद ओर कांग्रेस का कुल वोट प्रतिशत 52.46 रहा यानी भाजपा प्रत्याशी से 6.8 अधिक।

2014 के चुनाव में भाजपा के कंवर सिंह तंवर ने यहां जीत हासिल की थी। तंवर के खाते में 528,880 (48.26%) वोट आए थे। दूसरे और तीसरे नंबर पर रही सपा और बसपा को क्रमश: 370,666 (33.82%) और 162983 (14.87%) वोट मिले थे। चौथे नंबर पर कांग्रेस-रालोद के संयुक्त प्रत्याशी राकेश टिकैत मात्र 9539 (0.87%) वोट हासिल कर पाए थे। सपा-बसपा-कांग्रेस-रालोद चारों दल का वोट प्रतिशत 49.56 बैठा यानी भाजपा से 1.3 फीसदी ज्यादा। इस चुनाव में कांग्रेस-रालोद का गठबंधन था। भाजपा अकेले मैदान में थी।


2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा-रालोद का गठबंधन था। इस सीट से रालोद-भाजपा के संयुक्त प्रत्याशी देवेन्द्र नागपाल ने जीत दर्ज की थी। नागपाल को 283182 (40.09%) वोट मिले थे। सपा, बसपा और कांग्रेस प्रत्याशियों को क्रमश: 191099 (27.05%), 170396 (24.12%) और 16878 (2.39%) वोट मिले थे।


पिछले तीन चुनाव के आंकड़ों से एक बात साफ है कि भाजपा बिना किसी गठबंधन के यहां चुनाव जीत सकती है, वहीं उसने लगातार अपना वोट प्रतिशत भी बरकरार रखा है। वहीं विपक्ष के सभी प्रमुख दल मिलकर जीत भी जाएं तो वोटों का अंतर बहुत बड़ा नहीं होता। भाजपा-रालोद गठबंधन यहां मजबूत साबित हो चुका है। इसका लाभ दोनों दलों को मिलता है। इस बार भाजपा-रालोद गठबंधन में हैं। जिससे एनडीए की ताकत बढ़ी हुई है।

बात कांग्रेस की कि जाए तो कांग्रेस प्रत्याशी राम पाल सिंह 1984 के आम चुनाव में यहां से जीते थे। पिछले 40 साल से कांग्रेस के लिए यहां जीत का सूखा पड़ा है। बसपा इस सीट पर हुए 16 चुनाव में दो बार 1999 और 2019 यहां जीत चुकी है। 2019 में बसपा को सपा-रालोद के गठबंधन का फायदा मिला। सपा यहां अंतिम बार 1996 के आम चुनाव में जीती थी। इस सीट पर भाजपा कुल तीन बार 1991, 1998 और 2014 में जीत दर्ज करा चुकी है।

2024 के चुनाव के लिए भाजपा ने पिछली बार हारे कंवर सिंह तंवर को फिर से भरोसा जताया है। बसपा ने वर्तमान सांसद दानिश अली का टिकट काटकर डॉ. मुजाहिद हुसैन उर्फ बाबू भाई को मैदान में उतारा है। सपा-कांग्रेस का गठबंधन है और यह सीट कांग्रेस के खाते में है। कांग्रेस ने बसपा से निष्कासित कुंवर दानिश अली को मैदान में उतारा है।


बीती 19 अप्रैल को पीएम नरेंद्र मोदी ने अमरोहा में रैली करके ये जता दिया कि अमरोहा को में जीत को लेकर भाजपा कितनी गंभीर है। अमरोहा के जगदीश सरन हिन्दू पीजी कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. ए.के. रस्तोगी के अनुसार, कांग्रेस और बसपा द्वारा मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में उतारने से मुस्लिम वोटों में विभाजन होना तय है। मुस्लिम वोटों में विभाजन का फायदा भाजपा को मिलेगा। भाजपा इस बार अमरोहा सीट ठीक-ठाक मार्जिन से जीतेगी।

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