लखनऊ, 03 फरवरी ( हि.स.)। लखनऊ की विरासत को संजोता महिंद्रा सनतकदा लखनऊ फेस्टिवल - 2023 शुक्रवार को पुराने शहर में बनी खूबसूतर सफेद बारादरी में शुरू हुआ। शहर में पिछले चैदह साल से अनवरत हो रहे इस फेस्टिवल की इस बार की थीम रक्स-ओ- मौसिकी है। फेस्टिवल में खात बात यह है कि इस साल की अवध की संस्कृति और परंपराओं का जश्न मनाया जा रहा है। फेस्टिवल का आरम्भ बारादरी में प्रसिद्ध साहित्यकार अमृतलाल नागर के नाम पर बनाए शहर के किसगोई तख्त पर समन हबीब और वेलेंटीना त्रिवेदी द्वारा एक रीडिंग के साथ किया गया । तहखाना रक्स-ओ-मौसिकी प्रदर्शनी का उद्घाटन आयुक्त डॉ. रोशन जेकब व जय शाह, महिंद्रा ग्रुप के सांस्कृतिक हेड अवम टी.म. कृष्णा ने किया। इस अवसर पर हुई ब्रास बैण्ड प्रतियोगिता ने उत्सव के माहौल को चार चांद लगा दिए।
इस के बाद उत्सव की थीम पर खास रोशनी डाली गई, जिसमें लखनऊ के शास्त्रीय संगीत, नृत्य कलाकारों और सीखने, प्रदर्शन करने व आने वाली पीढ़ियों को अपनी तालीम देने की अनगिनत कहानियां मौजूद रही। तस्वीरें, कलाकृतियाँ और प्रदर्शन ने कैसरबाग के दिल में सांस्कृतिक जागरूकता पैदा कर दी और वहां आए हर किसी ने खुद को इतिहास का एक जीवित हिस्सा बनता पाया।
इसके बाद निर्मल चंदर की डॉक्यूमेंट्री’ जिक्र उस परवरिश का’ और एस. कालिदास की ‘है अख्तरी’ फिल्म की स्क्रीनिंग की गई, जिसमे ठुमरी और गजल गायिका बेगम अख्तर की जिन्दगी पर रौशनी डाली गई।. बेगम अख्तर गजल, ठुमरी और दादरा गाने की माहिर थीं। दोनों लघु फिल्मों में फनकारो की कहानियां, उनकी यात्रा प्रदर्शन शैलियों, उनके संघर्षों और प्रसिद्धि में वृद्धि की कहानियां बताईं। पहले दिन के उस अंतिम कार्यक्रम में बेगम अख्तर को गायिका डॉ. संगीता नारुरकर ने अपनी आवाज से संगीतमय श्रद्धांजलि दी।
कार्यक्रम की शाम अमृतलाल नागर किस्सागोई तख्त, बारादरी में सांस्कृतिक प्रदर्शन और किस्सागोई को समर्पित थी। पहला प्रदर्शन इल्मास हुसैन खान ने अपने तबला वादन से किया। वह लखनऊ तबला घराने से संबंध रखते हैं। तबले पर प्रस्तुत उनकी बंदिशों ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
उधर क्राफ्ट्स और वीवीएस बाजार में चरखी नामक स्टाल जो की पटवा ज्वेलरी और बालों में गूंथे जाने वाले धागों पर युवतियों की खूब भीड़ उमड़ती दिखी। बावर्ची टोला और सलेमपुर हाउस में भी बहुत भीड़ देखी गई।