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Article-नशा मुक्त समाज निर्माण के लिए प्रतिबद्ध केंद्र सरकार

डॉ. विपिन कुमार किसी भी स्वस्थ एवं सभ्य समाज के लिए मादक पदार्थ का सेवन अभिशाप है। इससे न केवल घातक शारीरिक व्याधियां उत्पन्न होती हैं, बल्कि यह समाज और राष्ट्र के लिए भी बेहद हानिकारक है। इसके प्रभाव से समाज में आपराधिक कृत्यों में वृद्धि होती है तथा स्वस्थ समाज दूषित होता है जो किसी भी व्यवस्था के लिए एक बड़ी समस्या है। वर्तमान समय में यह विश्वव्यापी समस्या है। भारत की युवा पीढ़ी में भी मादक पदार्थों का इस्तेमाल अप्रत्याशित रूप से बढ़ा है। यह अत्यंत चिंताजनक है।आज युवा हसीस, चरस, हेरोइन, कोकीन आदि का इस्तेमाल बेहद खतरनाक ढंग से कर रहे हैं, जो उनकी असुरक्षा के भाव को भी दिखाता है। युवाओं का यह व्यवहार हमारे समाज को खोखला कर रहा है, जो राष्ट्र निर्माण में बाधक है। हमारे देश में इन मादक पदार्थों का सेवन ज्यादातर उच्च शिक्षा हासिल कर रहे छात्र-छात्राओं द्वारा किया जाता है। यह युवा पश्चिमी देशों की सभ्यता और संस्कृति में खोये हैं। लंबे समय तक मादक पदार्थों के सेवन से हमारा शरीर निष्क्रिय और कमजोर हो जाता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने के कारण कई तरह की प्राणघातक बीमारियों की चपेट में आना कोई बड़ी बात नहीं है। चिंता की बात यह है कि आय का अधिकांश हिस्सा नशे को भेंट चढ़ जाता है और फलतः समाज में आत्महत्या, चोरी, हत्या जैसी घटनाएं बढ़ जाती हैं। भारत जैसे विशाल देश में मादक पदार्थों के सेवन पर रोक लगाना वास्तव में बड़ी नीतिगत चुनौती रही है। अब इसके निराकरण के लिए ‘नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस अधिनियम - 1985’ का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा हमने ‘यूएन सिंगल कन्वेंशन ऑन नारकोटिक्स ड्रग्स-1961’, ‘कन्वेंशन ऑन साइकोट्रोपिक सब्सटेंस - 1971’, ‘कन्वेंशन ऑन इलिसिट ट्रैफिक इन नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस-1988’ जैसे कानूनों पर भी हस्ताक्षर किए हैं, जो चिकित्सीय और वैज्ञानिक उद्देश्यों के लिये मादक पदार्थों के उपयोग को सीमित करने के अलावा, उनके दुरुपयोग के दोहरे उद्देश्यों को निर्धारित करते हैं। इसकी रोकथाम के लिए अब तंबाकू, गुटखा जैसे कानूनी रूप से उपलब्ध नशीली दवाओं पर पूर्णतः रोक लगाते हुए पुनर्वास केंद्रों की उपलब्धता को भी बढ़ावा देने की जरूरत है। इसमें कोई दोराय नहीं है कि आज भारत में मादक पदार्थों के तेजी से बढ़ते दायरे के पीछे ड्रग कार्टेल, क्राइम सिंडिकेट, पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का हाथ है, जो देश में ड्रग्स का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है। बीते आठ वर्षों के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नशा मुक्ति के लिए कई प्रयास किए हैं और आज उनका आह्वान एक दृढ़-संकल्प बन गया है। प्रधानमंत्री भली-भांति समझते हैं कि यह वास्तव में एक ऐसी समस्या है, जिसे नीतिगत फैसलों के साथ-साथ शिष्टाचार और जीवन शैली में बदलाव के जरिये ही बदला जा सकता है और उनके प्रयासों में इसकी झलक भी देखने के लिए मिलती है। इसी कड़ी में केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने हाल ही में पूर्वोत्तर राज्यों के मुख्यमंत्रियों, मुख्य सचिवों और पुलिस महानिदेशकों के साथ एक बैठक की अध्यक्षता की है। असम में हुई इस बैठक में 'मादक पदार्थों की तस्करी और राष्ट्रीय सुरक्षा' विषय पर गहन विचार-विमर्श किया गया। इस दौरान अमित शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री की अगुवाई में आजादी के अमृत महोत्सव के दौरान 75 हजार किलोग्राम मादक पदार्थों को नष्ट करने का लक्ष्य था। अभी तक 1.5 लाख किलोग्राम से भी अधिक मादक पदार्थों को नष्ट किया जा चुका है, जो लक्ष्य के दोगुने से भी अधिक है। इस दौरान उन्होंने कहा कि 2006 से 2013 के बीच 768 करोड़ रुपये मूल्य की ड्रग्स जब्त हुई थी, जो बीते 8 वर्षों में 25 गुना बढ़ोतरी के साथ 20 हजार करोड़ रुपये हो गई। इससे जाहिर है कि हमने देश में नशीले पदार्थों के नेटवर्क को ध्वस्त करने में एक अभूतपूर्व रणनीतिक सफलता हासिल की है। पूर्व में सभी संबंधित एजेंसियों के लचर रवैये और कानूनों के लचीले क्रियान्वयन में कमी के कारण हमें अपेक्षित परिणाम नहीं मिल रहे थे। प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई में मादक पदार्थों की तस्करी पर रोक लगाने के लिए सशक्तिकरण, समन्वय और विस्तृत जागरुकता अभियान के त्रिसूत्री राह को अपनाया गया है। 2014 के बाद से परिस्थितियां सचमुच बदली हैं। बहरहाल, हमें नशे के सेवन को एक चारित्रिक दोष की बजाय, एक बीमारी के रूप में देखने की जरूरत है। साथ ही इससे यथाशीघ्र मुक्ति के लिए सार्थक प्रयास करने की जरूरत है । यह एक ऐसी बीमारी है, जिसे सामाजिक जागरुकता, चिकित्सा सहायता और परिवार के मजबूत समर्थन के माध्यम से आसानी से ठीक किया जा सकता है।
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